BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
'ईशावास्योपनिषद्' का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर -

'ईशावास्योपनिषद्' शुक्ल यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के रूप में है। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनी संहिता में चालीस अध्याय हैं। इसके अन्तिम अथवा चालीसवें अध्याय को 'ईशावास्योपनिषद्' का रूप दिया गया है। इस उपनिषद में १८ मन्त्र हैं। इस आधार पर यह उपनिषद् आकार में अति लघु परन्तु इसका महत्व अत्यधिक स्वीकृत किया गया है। मुण्डकोपनिषद् में जो दस उपनिषद् प्रमुख बताये गये हैं उनमें उसे अर्थात् 'ईशावास्योपनिषद्' को प्रथम स्थान प्राप्त है। मुण्डकोपनिषद् का वह मन्त्र इस प्रकार है-

ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्ड, माडूक्य, तिन्तिरिः। ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं दश॥

इस मन्त्र की शुरूआत 'ईशावास्यमिदम्' इस उपनिषद् का पहला शब्द है। इसके बाद उपनिषद् शब्द जोड़कर 'ईशावास्योपनिषद्' शब्द बना है। इस उपनिषद का वर्ण्य विषय ईश्वर की सर्वव्यापकता है। ईशावास्यम् का यही अर्थ है - ईश्वर के निवास से सम्बन्धित। ईश्वर की सर्वव्यापकता अध्यात्म की बहुत बडी उपलब्धि है।

दर्शन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञानोपार्जन के साथ-साथ कर्म करने की भी महान आवश्यकता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन ईश में है। यही मत ज्ञान कर्म समुच्चयवाद के नाम से बाद में प्रसिद्ध हुआ। भारतीय दर्शन में इसी वाद की प्रधानता है।

उपनिषदों में यह यजुर्वेद संहिता की वाजसनेयी भाग की संहिता का चालीसवाँ अध्याय है। वाजसनेयी संहिता के ३६ अध्यायों में आद्यत कर्मकाण्ड का विशुद्ध निरूपण है। यह बस कर्मकाण्ड के पश्चात् संहिता का अन्तिम चालीसवाँ अध्याय है और इसमें विशुद्ध ज्ञानकाण्ड का वर्णन है। इसका प्रथम मन्त्र 'ईशावास्यम्' है। आकार में यद्यपि यह बहुत ही छोटा है किन्तु इसका महत्व और प्रामाण्य प्राचीनकाल से है।

इस उपनिषद के प्रारम्भ से अन्त तक में शान्ति पाठ है। इस हर एक मन्त्र के साथ प्रसिद्ध शंकर भाष्य है। सारे जगत में भगवद् दृष्टि का उपदेश है। मनुष्य स्वाभिमानी के लिए कर्मविधि कही गयी है। अज्ञानी की निन्दा है और आत्मा का स्वरूप बतलाया गया है। अभेददर्शी की दशा पर प्रकाश डाला गया है। आत्मनिरूपण की समीक्षा है। ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग का स्पष्ट वर्णन है। कर्म और उपासना का समुच्य कल्याणकारक है। अत्यन्त की उपासना का समुच्चय एवं उसके मरमोत्मुख भक्त की महात्मा की प्रर्थना है। अन्तिम में ग्रन्थ का वास्तविक उद्देश्य मन्त्रव्य प्रयोजन कहा गया है।

उपनिषद् शब्द की सिद्धि 'उप' और 'नि' उपसर्गपूर्वक 'सद्' धातु से 'क्विप' लगाकर हुई है। 'उप' का अर्थ है- 'समीप' 'नि' का 'निश्चय' या 'निष्ठापूर्वक' और 'सद्' का अर्थ है बैठना। उपनिषद् का दूसरा शाब्दिक अर्थ है - तत्वज्ञान के निमित्त गुरु के समीप निष्ठापूर्वक बैठना। रहस्यात्मक तत्वज्ञान का प्रतिपादन प्राचीन काल में गुरु-शिष्य से प्रश्नोत्तर शैली में होता रहा है। तत्वज्ञान का संग्रह इन ग्रन्थों में हुआ है इसी कारण इन ग्रन्थों ने भी उपनिषद् कहा जाने लग। उपनिषद् का ब्रह्मविद्या के सन्दर्भ में भी अर्थ किया गया है। इस दृष्टि से यह धातु की 'विशरण' गति और अवसादक। अर्थों की प्रसंग विशेष में व्याख्या की गयी है।

उपनिषदों के महत्व का निरूपण न केवल भारतीय बल्कि विदेशी विद्वानों ने भी किया है। वेदों के बाद आख्यकों में जिस आध्यात्मिक जिज्ञासा मनन चिन्तन और स्वानुभूति की प्रक्रिया का बीज- वपन और पल्लवित हुआ उसका सुव्यवस्थित रूप उपनिषदों में देखने को मिलता है।

उपनिषद् के विषय में सुप्रसिद्ध विद्वान रानडे का कथन है -

"भारतीय विचार जगत के इतिहास में उपनिषदों के अध्ययन के पुरुत्थान के साथ-साथ प्रत्येक बार एक महान धार्मिक आन्दोलन हुआ। जब आज से लगभग दो सहस्र चार सौ वर्ष पूर्व भगवद्गीताकार ने प्रथम बार उपनिषदीय तत्व सिद्धान्तों को एक स्वर्गीय अमरकाव्य में समन्वित करने का प्रयत्न किया था तो उसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से धार्मिक विचारधारा को एक नवजीवन प्रदान करना तथा इस प्रकार का एक वास्तविक रहस्यात्मक धर्म की नीवं डालना था जो युगों तक रहस्यात्मक कार्यकल्पनाओं के पन्थ को प्रकाशित करता रहे। पुनः लगभग द्वादश शताब्दियों के अन्तर जब वेदान्त दर्शन को दिव्य प्रसाद के मनीषी विधायकों ने उपनिषदीय ऋषियों से प्राप्त उपादानों के आधार पर सत्य के श्रेणी विधान में हाथ लगाया तो फिर एक नवीन पार्थिक परिवर्तन का युग उपस्थित हो गया।

उपनिषदों से प्राप्त आत्मानुभूति के शाश्वत सत्यों के आधार पर जो कोई विचार विधान संसार के सामने रखे वह विज्ञान दर्शन और धर्म के सिद्धान्तों से समन्वित सामंजस्य रखता हो जिससे हमारे सत्य विषयक दार्शनिक सिद्धान्त अक्षुण्ण रहने के साथ-साथ वर्तमान वैज्ञानिक विकास के प्रतिरोध के स्थान पर परिपोषण प्राप्त कर सके और हमारे वैज्ञानिक तथा दार्शनिक सिद्धान्त अपनी पारस्परिक प्रतिक्रिया द्वारा एक ही परमेश्वर के महिमा संगीत की समाध्वनि प्रतिगुंजित होने लगे।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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